बहुत अखरता है
अपना कहकर कोई साथ छोड़ दे
बहुत अखरता है
वादा करके कोई तोड़ दे
बहुत अखरता है
जिम्मेदारी लेकर मुंह फेर ले
बहुत अखरता है....
अपना कहकर ,जब कोई बेगाना कर जाता है
साथी बनकर,खुद ही शूल बनाता है
थोड़ी उलझनों पर ,रिश्ते में जब दोष लगाता है
सचमुच.... बहुत अखर जाता है
विश्वास की डोर पर रिश्ते बनाए जाते है
मोती मोती प्यार के पिरोए जाते है
तब जाकर रंगत लाते है
पल पल निखरते जाते है
डगमग डगमग नाव नहीं होती
धूप बेशक होती है
पर कही न कही छांव भी होती ...
क्या यही है प्यार की भाषा
या कल्पनाओं पर बनी है इसकी परिभाषा
प्यार नाम की कोई चीज होती भी है....
क्या....कल्पनाओं में चलती जैसी
हकीकत में होती नही वैसी
©Neha Bhargava (karishma)
#प्यार हकीकत या फरेब