तेरा होना ही काफ़ी होता अगर तो हम यूँ तन्ह

"तेरा होना ही काफ़ी होता अगर तो हम यूँ तन्हा ना होते। भीड़ में बैठना ही काफी होता अगर तो यूँ महफ़िल में अकेले ना होते।। एक टहनी पर कहीं दिल टिका था मेरा पतझड़ का मौसम था। गलती से किसी पर गिर जाए अगर तो कोई रुस्वाई ना करे।। कि मैं तन्हा हूँ कह दूं अगर तो भी डरता हूँ। कहीँ ये सच सुनकर मेरी वो बेवफ़ाई ना करे।। ©author_eye"

 तेरा होना ही काफ़ी होता अगर 
        तो हम यूँ तन्हा ना होते।
भीड़ में बैठना ही काफी होता अगर
        तो यूँ महफ़िल में अकेले ना होते।।

एक टहनी पर कहीं दिल टिका था मेरा 
                   पतझड़ का मौसम था।
गलती से किसी पर गिर जाए अगर
                   तो कोई रुस्वाई ना करे।।

कि मैं तन्हा हूँ कह दूं अगर
                    तो भी डरता हूँ।
कहीँ ये सच सुनकर मेरी
                    वो बेवफ़ाई ना करे।।

                                           ©author_eye

तेरा होना ही काफ़ी होता अगर तो हम यूँ तन्हा ना होते। भीड़ में बैठना ही काफी होता अगर तो यूँ महफ़िल में अकेले ना होते।। एक टहनी पर कहीं दिल टिका था मेरा पतझड़ का मौसम था। गलती से किसी पर गिर जाए अगर तो कोई रुस्वाई ना करे।। कि मैं तन्हा हूँ कह दूं अगर तो भी डरता हूँ। कहीँ ये सच सुनकर मेरी वो बेवफ़ाई ना करे।। ©author_eye

तेरा होना ही काफ़ी होता अगर
तो हम यूँ तन्हा ना होते।
भीड़ में बैठना ही काफी होता अगर
तो यूँ महफ़िल में अकेले ना होते।।

एक टहनी पर कहीं दिल टिका था मेरा
पतझड़ का मौसम था।
गलती से किसी पर गिर जाए अगर

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