बूंद बूंद कर जब बरसता हैं पानी
याद आती हैं वो बचपन की कहानी
हथेलियों को फैलाकर सामने
मजा आता था बूंदो को थामने
करते थे जी भर कर मनमानी।
बूंद बूंद कर जब बरसता हैं पानी।
बूंदे गिरती थी हो जाती थी गायब
तपती जमीन का था रूप गजब
जैसे मिट गईं हो कोई जवानी
बूंद बूंद कर जब बरसता हैं पानी
©Kamlesh Kandpal
#paani