हुआ जो सामना सूरज का मेरे ज़ख्मों से, फ़लक पे छोड़ के | हिंदी Poetry

"हुआ जो सामना सूरज का मेरे ज़ख्मों से, फ़लक पे छोड़ के अपना लिबास डूब गया, कहूँ तो किससे कहूँ अपने दिल की तकलीफ़ें, मेरा ही ग़म मुझसे रूठ गया। ©izhar writes123"

 हुआ जो सामना सूरज का मेरे ज़ख्मों से,
फ़लक पे छोड़ के अपना लिबास डूब गया,
कहूँ तो किससे कहूँ अपने दिल की तकलीफ़ें,
मेरा ही ग़म मुझसे रूठ गया।

©izhar writes123

हुआ जो सामना सूरज का मेरे ज़ख्मों से, फ़लक पे छोड़ के अपना लिबास डूब गया, कहूँ तो किससे कहूँ अपने दिल की तकलीफ़ें, मेरा ही ग़म मुझसे रूठ गया। ©izhar writes123

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