"जाने क्या रंग लाएँगे ये चाहतों के सिलसिले,
जो तेरे और मेरे दर्मियां हैं पले;
दिल की वादियों में सुबह जो एहसास की खिले,
यादों की शबनम में भिगकर वो ही रात सी ढले!
अनकहा अनसुना सा ख्वाब आधा सोता आधा जागता फिरे,
हसरत दीदार की लेकर फिर है लगता नींद के गले;
धड़कनों में कभी साँसों में ये जो हैं आहटों के साज़ छिड़े,