आज हूँ थका गिरा, फिर से लौट आऊंगा....
अपने हक़ का आसमाँ , मैं छीन के बताऊंगा....
हार को भी एक दिन, जीत के दिखाऊंगा....
और ज़िन्दगी को जिंदगी का, फ़लसफ़ा सिखाऊंगा....
पर कटे तो क्या हुआ, ज़िंदा अभी परवाज़ है....
जी रहा हूँ मैं मगर, जिंदगी नाराज है....
जी रहा हूँ मैं मगर, जिंदगी नाराज है....
©Manoj Chauhan
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