बुढ़ापा उम्र अपनी पकाकर बुढ़ापा आया है, कौन कहता ह | हिंदी कविता Video

"बुढ़ापा उम्र अपनी पकाकर बुढ़ापा आया है, कौन कहता है हमने मुफ्त में पाया है। गालों पर झुर्रियां बालों पै चमक लाया है, अनुभवों की आंच में पक बुढ़ापा आया है। साठ साल के बाद यह ख्याल आया है, मिली नहीं खैरात खुद को गला के पाया है। पढ़ा लिखा कर बच्चों को जवानी गंवाई है, पेट में आंत ना मुंह में दांत तब ये उम्र पाई है। मंदिरों में माथे टेके आएं घर में खुशी दादा -दादी नाना -नानी बनआई लब पे हंसी आया है बुढ़ापा तो जीना आ गया यारों, छोड़ फिक्र जमाने की खुश रहने की चाह जगी। उम्र अपनी पकाकर बुढ़ापा आया है। "

बुढ़ापा उम्र अपनी पकाकर बुढ़ापा आया है, कौन कहता है हमने मुफ्त में पाया है। गालों पर झुर्रियां बालों पै चमक लाया है, अनुभवों की आंच में पक बुढ़ापा आया है। साठ साल के बाद यह ख्याल आया है, मिली नहीं खैरात खुद को गला के पाया है। पढ़ा लिखा कर बच्चों को जवानी गंवाई है, पेट में आंत ना मुंह में दांत तब ये उम्र पाई है। मंदिरों में माथे टेके आएं घर में खुशी दादा -दादी नाना -नानी बनआई लब पे हंसी आया है बुढ़ापा तो जीना आ गया यारों, छोड़ फिक्र जमाने की खुश रहने की चाह जगी। उम्र अपनी पकाकर बुढ़ापा आया है।

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