जाना तेरी याद का कोई गुल शादाब हो, रात जो देखा था | हिंदी Shayari

"जाना तेरी याद का कोई गुल शादाब हो, रात जो देखा था वो खाब भी गर्क़ाब हो। वो तू ही था जिससे थी रंजिशें और रग़बतें, अब मनाएं किसको हम कौन ही काहाब हो। कोई रोए आंखें नम हों ज़रूरी तो नहीं।, यह भी हो सकता है दिल अश्क़ों से सैराब हो। दोस्ती में कोई भी बाला तर होता नहीं, सो मेरा अब से न कोई लक़ब अलक़ाब हो। मुझको महरो माह की अब ज़रूरत ना रही, राह मुझको फिर दिखाने वही शबताब हो। कामयाबी ही अगर दर्ज हर एक बाब हो, तो ज़रूरी है नाकामी भी दर यक बाब हो। ©MOEEN"

 जाना तेरी याद का कोई गुल शादाब हो,
रात जो देखा था वो खाब भी गर्क़ाब हो।

वो तू ही था जिससे थी रंजिशें और रग़बतें,
अब मनाएं किसको हम कौन ही काहाब हो।

कोई रोए आंखें नम हों ज़रूरी तो नहीं।,
यह भी हो सकता है दिल अश्क़ों से सैराब हो।

दोस्ती में कोई भी बाला तर होता नहीं,
सो मेरा अब से न कोई लक़ब अलक़ाब हो।

मुझको महरो माह की अब ज़रूरत ना रही,
राह मुझको फिर दिखाने वही शबताब हो।

कामयाबी ही अगर दर्ज हर एक बाब हो,
तो ज़रूरी है नाकामी भी दर यक बाब हो।

©MOEEN

जाना तेरी याद का कोई गुल शादाब हो, रात जो देखा था वो खाब भी गर्क़ाब हो। वो तू ही था जिससे थी रंजिशें और रग़बतें, अब मनाएं किसको हम कौन ही काहाब हो। कोई रोए आंखें नम हों ज़रूरी तो नहीं।, यह भी हो सकता है दिल अश्क़ों से सैराब हो। दोस्ती में कोई भी बाला तर होता नहीं, सो मेरा अब से न कोई लक़ब अलक़ाब हो। मुझको महरो माह की अब ज़रूरत ना रही, राह मुझको फिर दिखाने वही शबताब हो। कामयाबी ही अगर दर्ज हर एक बाब हो, तो ज़रूरी है नाकामी भी दर यक बाब हो। ©MOEEN

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