मन मेरो पंक्षी बन जावे।पल में कहां से कहां पहुंच आ

"मन मेरो पंक्षी बन जावे।पल में कहां से कहां पहुंच आवे।देखन लागे नयन मोरी। कभी आस पूरी ना होय।करे बिचार मन भावन लागे। सब कुछ उल्टा होय। कलियुग के दुनिया में भला कौन अपना होय। सबको मागन आन पड़ी है।जग लोभी होय।सब कहत यह मेरो मेरो।ना किसी का होय। उड़ता पंछी मन मेरो तड़प तड़प के रोय।उठत जग हांसन लागे।नयन सबको भाए। पैसा ही सब कुछ होय तो नींद कहां से आए। जो जैसा कर्म करेगा फल उसको मिल जाए। ©Karamsingh Bhuihar"

 मन मेरो पंक्षी बन जावे।पल में कहां से कहां पहुंच आवे।देखन लागे नयन मोरी। कभी आस पूरी ना होय।करे बिचार मन भावन लागे। सब कुछ उल्टा होय। कलियुग के दुनिया में भला कौन अपना होय। सबको मागन आन पड़ी है।जग लोभी होय।सब कहत यह मेरो मेरो।ना किसी का होय। उड़ता पंछी मन मेरो तड़प तड़प के रोय।उठत जग हांसन लागे।नयन सबको भाए। पैसा ही सब कुछ होय तो नींद कहां से आए। जो जैसा कर्म करेगा फल उसको मिल जाए।

©Karamsingh Bhuihar

मन मेरो पंक्षी बन जावे।पल में कहां से कहां पहुंच आवे।देखन लागे नयन मोरी। कभी आस पूरी ना होय।करे बिचार मन भावन लागे। सब कुछ उल्टा होय। कलियुग के दुनिया में भला कौन अपना होय। सबको मागन आन पड़ी है।जग लोभी होय।सब कहत यह मेरो मेरो।ना किसी का होय। उड़ता पंछी मन मेरो तड़प तड़प के रोय।उठत जग हांसन लागे।नयन सबको भाए। पैसा ही सब कुछ होय तो नींद कहां से आए। जो जैसा कर्म करेगा फल उसको मिल जाए। ©Karamsingh Bhuihar

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