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दिल इश्क में डूबा कभी वो दौर ही कुछ और था।
फ़ुर्सत रहा दिन भर सभी वो दौर ही कुछ और था।
लगती नहीं कुछ और वो फिर भी सजा सपने लिए
फितरत हमें इक इश्क में फिर चाहना पुर जोर था।
तय कर लिया हमने वफ़ा में आशिकी करना यही
उसके बिना महफ़िल कहीं वो देखना मुखचोर था।
उसके बिना सुहरत नहीं अच्छी भली लगती कहां
जहमत उठा आखिर चले जाते रहे दिन शोर था।
किसको पता चलते कहां दिखते नहीं पथ आदमी
मुश्किल बड़ी रजनी चली रौशन हुए दिन भोर था।
गुनगुन किया सुन शोरसे कलियां खिली फूली हुई
गुलशन महक अपना नजर आ गया इक भौर था
©K L MAHOBIA
#दिल से