मैं मुहब्बत फिर से कर तो लूँ मगर, ये तमाशा हमसे अब | हिंदी शायरी

"मैं मुहब्बत फिर से कर तो लूँ मगर, ये तमाशा हमसे अब होगा नहीं।। -क़ातिब"

 मैं मुहब्बत फिर से कर तो लूँ मगर,
ये तमाशा हमसे अब होगा नहीं।।
-क़ातिब

मैं मुहब्बत फिर से कर तो लूँ मगर, ये तमाशा हमसे अब होगा नहीं।। -क़ातिब

पूरी ग़ज़ल

ये भँवर है आपकी दुनिया नही
इस पते पर अब कोई रहता नहीं।।

एक ही गम एक ही तकलीफ है,
जो कभी मेरा था,अब मेरा नहीं।।

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