उसे पसंद थी,मेरी लबों की वो हँसी, जिसका सिंगार मैं

"उसे पसंद थी,मेरी लबों की वो हँसी, जिसका सिंगार मैं किया करती थी। नटखट-सी, झल्ली-सी मैं, उसे पसंद किया करती थी। उसे पसंद थी, पागल-सी मैं, जब एक नाम से उसे चिड़ाती थी। और दिल ही दिल मैं सिर्फ, उसे ही अपना मानती थी।"

 उसे पसंद थी,मेरी लबों की वो हँसी,
जिसका सिंगार मैं किया करती थी।
नटखट-सी, झल्ली-सी मैं,
उसे पसंद किया करती थी।
उसे पसंद थी, पागल-सी मैं,
जब एक नाम से उसे चिड़ाती थी।
और दिल ही दिल मैं सिर्फ,
 उसे ही अपना मानती थी।

उसे पसंद थी,मेरी लबों की वो हँसी, जिसका सिंगार मैं किया करती थी। नटखट-सी, झल्ली-सी मैं, उसे पसंद किया करती थी। उसे पसंद थी, पागल-सी मैं, जब एक नाम से उसे चिड़ाती थी। और दिल ही दिल मैं सिर्फ, उसे ही अपना मानती थी।

part 2

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