बगैर तुम्हारे , हम कैसे जिये । थोड़ा समझो प्रिय । | हिंदी कविता

"बगैर तुम्हारे , हम कैसे जिये । थोड़ा समझो प्रिय । तुम्हे देखकर होता है , कोई नशा बिन पिये । थोड़ा समझो प्रिये । उधेड़ते हो तुम ही , तुरपाइयाँ मन की , तुमने ही हमारे , कितने ज़ख्म सिये । थोड़ा समझो प्रिय । है जीनव में और भी , परेशानियां कई , हम मुस्कुराते है तो बस , तुम्हारे लिए , थोड़ा समझो प्रिय । ©Vinod mehra"

 बगैर तुम्हारे ,
हम कैसे जिये ।
थोड़ा समझो प्रिय ।

तुम्हे देखकर होता है ,
कोई नशा बिन पिये ।
थोड़ा समझो प्रिये ।

उधेड़ते हो तुम ही ,
तुरपाइयाँ मन की ,
तुमने ही हमारे ,
कितने ज़ख्म सिये ।
थोड़ा समझो प्रिय ।

है जीनव में और भी ,
परेशानियां कई ,
हम मुस्कुराते है तो बस ,
तुम्हारे लिए ,
थोड़ा समझो प्रिय ।

©Vinod mehra

बगैर तुम्हारे , हम कैसे जिये । थोड़ा समझो प्रिय । तुम्हे देखकर होता है , कोई नशा बिन पिये । थोड़ा समझो प्रिये । उधेड़ते हो तुम ही , तुरपाइयाँ मन की , तुमने ही हमारे , कितने ज़ख्म सिये । थोड़ा समझो प्रिय । है जीनव में और भी , परेशानियां कई , हम मुस्कुराते है तो बस , तुम्हारे लिए , थोड़ा समझो प्रिय । ©Vinod mehra

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