मैंने एक बिहारी से पूछा, कि छठ क्या है ? तो जवाब

"मैंने एक बिहारी से पूछा, कि छठ क्या है ? तो जवाब मैने कुछ यूँ पाया, ये त्योहार नहीं, ये प्यार है, ये वो चार दिन हैं जो, सब को अपने मिट्टी की याद दिला देती है, ये वो कड़ी हैं जो बिछड़ो को भी मिला देती हैं, इसमे दिखावा किसी से हो ही नहीं पाता, हर सख्स श्रद्धा भाव से कुछ यूँ खो जाता , घुटनों से डूब के ढलते सूरज को अर्घ देना, जुबां पे छठ के गीत, हर आँखे नम अब उस पल के बारे मे क्या ही कहना, उन शामों मे गंगा दुल्हन सी दिखती है, दूर -दूर तक रोशनी, ये आँखे तो बस अब किनारों पे टिकती हैं, ठेकुआ, कद्दू, दाल, चावल के आगे स्वादिष्ट पकवान का कुछ मोह ही नहीं, दोबारा उस स्वाद के इंतजार मे 361 तारीखे लगती हैं ये बस त्योहार नहीं ये हमारी जान, नहीं, केवल मेरी ही क्यों ये भारत की शान है, इतना कहते हुए उस बिहारी के आँखो मे नमी थी, अब क्या ही रह गया था जानने को, अब भी भला किसी जानकारी की कमी थी? ©Sarah Moses"

 मैंने एक बिहारी से पूछा, कि
छठ क्या है ? 
तो जवाब मैने कुछ यूँ पाया, 
ये त्योहार नहीं, ये प्यार है, 
ये वो चार दिन हैं जो, 
सब को अपने मिट्टी की याद दिला देती है, 
ये वो कड़ी हैं जो बिछड़ो को भी मिला देती हैं, 
इसमे दिखावा किसी से हो ही नहीं पाता, 
हर सख्स श्रद्धा भाव से कुछ यूँ खो जाता , 
घुटनों से डूब के ढलते सूरज को अर्घ देना, 
 जुबां पे छठ के गीत, हर आँखे नम अब उस पल के बारे मे क्या ही कहना, 
उन शामों मे गंगा दुल्हन सी दिखती है, 
दूर -दूर तक रोशनी, ये आँखे तो बस अब किनारों पे टिकती हैं, 
ठेकुआ, कद्दू, दाल, चावल के आगे स्वादिष्ट पकवान का कुछ मोह ही नहीं, 
 दोबारा उस स्वाद के इंतजार मे 361 तारीखे लगती हैं
ये बस त्योहार नहीं ये हमारी जान, नहीं, केवल मेरी ही क्यों ये भारत की शान है, 
इतना कहते हुए उस बिहारी के आँखो मे नमी थी, 
अब क्या ही रह गया था जानने को,
अब भी भला किसी जानकारी की कमी थी?

©Sarah Moses

मैंने एक बिहारी से पूछा, कि छठ क्या है ? तो जवाब मैने कुछ यूँ पाया, ये त्योहार नहीं, ये प्यार है, ये वो चार दिन हैं जो, सब को अपने मिट्टी की याद दिला देती है, ये वो कड़ी हैं जो बिछड़ो को भी मिला देती हैं, इसमे दिखावा किसी से हो ही नहीं पाता, हर सख्स श्रद्धा भाव से कुछ यूँ खो जाता , घुटनों से डूब के ढलते सूरज को अर्घ देना, जुबां पे छठ के गीत, हर आँखे नम अब उस पल के बारे मे क्या ही कहना, उन शामों मे गंगा दुल्हन सी दिखती है, दूर -दूर तक रोशनी, ये आँखे तो बस अब किनारों पे टिकती हैं, ठेकुआ, कद्दू, दाल, चावल के आगे स्वादिष्ट पकवान का कुछ मोह ही नहीं, दोबारा उस स्वाद के इंतजार मे 361 तारीखे लगती हैं ये बस त्योहार नहीं ये हमारी जान, नहीं, केवल मेरी ही क्यों ये भारत की शान है, इतना कहते हुए उस बिहारी के आँखो मे नमी थी, अब क्या ही रह गया था जानने को, अब भी भला किसी जानकारी की कमी थी? ©Sarah Moses

#chhat

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