रेगिस्तान में हमने महल देखा,
कब्रिस्तान में चहल पहल देखा;
कितने मगरूर हैं लोग यहां,
मोह माया को हमने सबल देखा। ।
कौडियों के भाव बिक रहे सभी,
उजड़ रही मासूम जिंदगियां तभी;
किनारे का कुछ अता पता नहीं,
सौदागर मौत के फैला रहे बाहें अभी। ।
कर याद खुदा का,
अपना ईमान कुछ साफ़ कर।
ना जी गैरत भरी जिंदगी अब,
दिल में ज़मी मैल को खाक कर। ।
ना अकड़ अपने इस तन पर,
छाया कर सब ज़न पर।
क्यों मदहोश हो इस कदर तुम,
कुछ भी नसीब ना होगा इस कफन पर। ।
written by
संतोष वर्मा। azamgarh वाले
खुद की जुबानी। ।
©Santosh Verma
सच्चाई। ।।