किस्मत सगी नही फिर भी रूठ जाती है, बुद्धि लोहा न

"किस्मत सगी नही फिर भी रूठ जाती है, बुद्धि लोहा नही फिर भी जंग लग जाता है, आत्मसम्मान शरीर नही फिर भी घायल हो जाता है ,, और इंसान मौसम नही फिर भी बदल जाता है ।। ©@apka dost"

 किस्मत सगी नही 
फिर भी रूठ जाती है,

बुद्धि लोहा नही 
फिर भी जंग लग जाता है,

आत्मसम्मान शरीर नही 
फिर भी घायल हो जाता है ,,

और इंसान मौसम नही
 फिर भी बदल जाता है ।।

©@apka dost

किस्मत सगी नही फिर भी रूठ जाती है, बुद्धि लोहा नही फिर भी जंग लग जाता है, आत्मसम्मान शरीर नही फिर भी घायल हो जाता है ,, और इंसान मौसम नही फिर भी बदल जाता है ।। ©@apka dost

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#BuddhaPurnima2021

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