White ऊंची इमारतें खड़ी हो गई,
लगता हैं आज़ादी दफ़न हो गई।
वक्त किसी को अब कहां,,
इंसान को खुद घुटन हो गई।।
प्रेम का बाजार लगता था,
वो गलियां गुम सी हो गई।
बचपन जवान बन बैठा है,,
बुढ़ापे की लाठी खत्म हो गई।
गुमसुम चेहरे मुस्कुरा देते थे,,
वो चेहरे धूमिल हो गए।
बाजार से रंगत निखारने वाले,
वो दुकानदार ओझल हो गए।
खुली खिड़कियां नजर नहीं आती,
बंद मकानों में सांसे नम हो गई।
ऊंची इमारतें खड़ी हो गई,
लगता है आजादी दफ़न हो गई।।
©Satish Kumar Meena
ऊंची इमारतें