प्रेम से लेकर पत्थर तक मोम से लेकर कट्टर तक सख़्ती | हिंदी कविता

"प्रेम से लेकर पत्थर तक मोम से लेकर कट्टर तक सख़्ती की उपाधी लिए निर्मोही घोषित हो कर वो लोग जिनके दिल नहीं होते कुछ तो महसूस करते होंगे... मज़बूती से डटे-डटे कड़वे बोल घोल-घोल कर जो स्वार्थ जैसे दिखते हैं कुछ-कुछ वो कभी तो टूटे रहते होंगे... मगर तब वो क्या कहते होंगे या दीवारें सुनती होंगी रोना उनका हँसना उनका हालातों से लड़ते-लड़ते लड़ाकू से बढ़ते-बढ़ते जब वो योद्धा बनते होंगे... ज़ख़्मों का हिसाब रखते हुए क्या गर्व घाव पे करते होंगे वो लोग जो पत्थर से हो गए हैं सिर्फ़ माँ की कोख़ में हँसते होंगे...! ©Vaishnavi"

 प्रेम से लेकर पत्थर तक
मोम से लेकर कट्टर तक
सख़्ती की उपाधी लिए
निर्मोही घोषित हो कर 
वो लोग जिनके दिल नहीं होते
कुछ तो महसूस करते होंगे...
मज़बूती से डटे-डटे
कड़वे बोल घोल-घोल कर
जो स्वार्थ जैसे दिखते हैं कुछ-कुछ
वो कभी तो टूटे रहते होंगे...
मगर तब वो 
क्या कहते होंगे 
या दीवारें सुनती होंगी
रोना उनका 
हँसना उनका
हालातों से लड़ते-लड़ते
लड़ाकू से बढ़ते-बढ़ते
जब वो योद्धा बनते होंगे...
ज़ख़्मों का हिसाब रखते हुए
क्या गर्व घाव पे करते होंगे
वो लोग जो पत्थर से हो गए हैं
सिर्फ़ माँ की कोख़ में हँसते होंगे...!

©Vaishnavi

प्रेम से लेकर पत्थर तक मोम से लेकर कट्टर तक सख़्ती की उपाधी लिए निर्मोही घोषित हो कर वो लोग जिनके दिल नहीं होते कुछ तो महसूस करते होंगे... मज़बूती से डटे-डटे कड़वे बोल घोल-घोल कर जो स्वार्थ जैसे दिखते हैं कुछ-कुछ वो कभी तो टूटे रहते होंगे... मगर तब वो क्या कहते होंगे या दीवारें सुनती होंगी रोना उनका हँसना उनका हालातों से लड़ते-लड़ते लड़ाकू से बढ़ते-बढ़ते जब वो योद्धा बनते होंगे... ज़ख़्मों का हिसाब रखते हुए क्या गर्व घाव पे करते होंगे वो लोग जो पत्थर से हो गए हैं सिर्फ़ माँ की कोख़ में हँसते होंगे...! ©Vaishnavi

Wo log jo patthar se ho gye hain..

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