हर रौशनदान से आने लगे थोड़ा-थोड़ा नूर, एक मक़ाम पर चि | हिंदी शायरी

"हर रौशनदान से आने लगे थोड़ा-थोड़ा नूर, एक मक़ाम पर चिराग जल जाएगा, हाथों की पकड़ तो है मज़बूत लेकिन, वो रेत है, फिसल जाएगा। किसे फ़िक्र है सदाक़त की, अब दिल लगाना किसे है, मोहब्बत की आड़ में जो कुछ करो, चल जाएगा। ©viJAY"

 हर रौशनदान से आने लगे थोड़ा-थोड़ा नूर,
एक मक़ाम पर चिराग जल जाएगा,
हाथों की पकड़ तो है मज़बूत लेकिन,
वो रेत है, फिसल जाएगा।
किसे फ़िक्र है सदाक़त की,
अब दिल लगाना किसे है,
मोहब्बत की आड़ में जो कुछ करो,
चल जाएगा।

©viJAY

हर रौशनदान से आने लगे थोड़ा-थोड़ा नूर, एक मक़ाम पर चिराग जल जाएगा, हाथों की पकड़ तो है मज़बूत लेकिन, वो रेत है, फिसल जाएगा। किसे फ़िक्र है सदाक़त की, अब दिल लगाना किसे है, मोहब्बत की आड़ में जो कुछ करो, चल जाएगा। ©viJAY

सदाक़त - Truth


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