इस बात की खुशी है, कि खुश हुआ हूं मैं।
जो दे रहे थे जख्म,
उनके जख्म का मरहम हुआ हूं मैं।
यह बात अलग है कि मैं जानता हूं सब,
लेकिन दुनिया की नजरों में अनपढ़ हुआ हूं मैं।
सबकी नजर में मैं पत्थर बन रहा,
अब झरने बह रहे हैं कितना नम हुआ मैं।
✍️✍️ विमोहक
©विमोहक काव्य लेखनी
#पत्थर