White ग़ज़ल :-
दुनिया देखी है पैदल चलकर मैंने ।
कुछ-कुछ सीखा है जीवन पढ़कर मैंने ।।
असली सुख मिलता है बीबी बच्चों में
रहकर देखा है अक्सर घर पर मैंने ।।
हँसते गाते बीते जीवन इस खातिर
पूजे हैं राहों के भी कंकर मैंने ।।
यह सच्ची निष्ठा है एक सनातन की ।
कण-कण को भी माना है शंकर मैंने ।।
पत्थर से अरदास लगाऊँ क्या अब मैं ।
देख लिये इंसान यहाँ पत्थर मैंने ।।
लाशों के अम्बार लगे दोनों जानिब
हँसते देखे उन पर कुछ जोकर मैंने ।।
शीश झुका कर आता है मेरे आगे ।
उसको बनाया है अपना नौकर मैंने ।
अपना वादा काश निभाने आते प्रखर
कितना रस्ता देखा है मुड़कर मैने ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
दुनिया देखी है पैदल चलकर मैंने ।
कुछ-कुछ सीखा है जीवन पढ़कर मैंने ।।
असली सुख मिलता है बीबी बच्चों में
रहकर देखा है अक्सर घर पर मैंने ।।
हँसते गाते बीते जीवन इस खातिर
पूजे हैं राहों के भी कंकर मैंने ।।