तुम्हें सोचने में वक्त, जाया नहीं करता,
अपनी सोच पर मैं,पछताया नहीं करता।
तुम्हें लगता है, हम बेफिक्रे हैं ,
अपनी मजबूरियों को सबको, बताया नहीं करता।
करता हूं कद्र, सारे रिश्तों की,
पर हमेशा उनको, आजमाया नहीं करता।
गर दिल की न समझे, तो मोहब्बत कैसी,
जान बूझकर किसी को, सताया नहीं करता।
मुझे जो समझो तुम, समझ लेना,
मैं बार बार सबको, मनाया नहीं करता।
©Nishchhal Neer
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