मुक्तक :-बूँद बूँद-बूँद को तरस रहा है , जग में ह | हिंदी कविता

"मुक्तक :-बूँद बूँद-बूँद को तरस रहा है , जग में हर इंसान । सूखी फसले देख-देखकर , रोता आज किसान । जीव-जन्तु की कौन करे फिर , बतलाओ परवाह- कुछ दौलत के आज नशे में , बन बैठे शैतान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 मुक्तक :-बूँद

बूँद-बूँद को तरस रहा है ,
 जग में हर इंसान ।
सूखी फसले देख-देखकर ,
रोता आज किसान ।
जीव-जन्तु की कौन करे फिर , 
बतलाओ परवाह-
कुछ दौलत के आज नशे में ,
 बन बैठे शैतान ।।


महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :-बूँद बूँद-बूँद को तरस रहा है , जग में हर इंसान । सूखी फसले देख-देखकर , रोता आज किसान । जीव-जन्तु की कौन करे फिर , बतलाओ परवाह- कुछ दौलत के आज नशे में , बन बैठे शैतान ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक :-बूँद

बूँद-बूँद को तरस रहा है ,
जग में हर इंसान ।
सूखी फसले देख-देखकर ,
रोता आज किसान ।
जीव-जन्तु की कौन करे फिर ,
बतलाओ परवाह-

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