ग़ज़ल जुर्म  की  जब  हो  हुकूमत  तो  वकालत

"ग़ज़ल जुर्म  की  जब  हो  हुकूमत  तो  वकालत  कैसी पूछते   लोग   हैं   फिर   हमसे  शिक़ायत  कैसी दुनिया   वाले  जो  करें  प्रेम  तो  अच्छा  लेकिन जब   करें   हम   तो   कहे  लोग  मुहब्बत  कैसी  दिल  बदलते  हैं  यहां  लोग  लिबासों  की  तरह हमने  बदला  है  अगर  दिल  तो  क़यामत कैसी लोग   यूं   ही   तो  नहीं  मरते  हैं  हम  पर  यारों ये   ख़बर   सारे   ज़माने   को  है  उल्फ़त  कैसी झूठ  से  बच  तो  नहीं सकता कभी तू भी प्रखर बोलता   सच   हैं  अगर  तू  तो  सियासत  कैसी ०१/०३/२०२४      -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 ग़ज़ल
जुर्म  की  जब  हो  हुकूमत  तो  वकालत  कैसी
पूछते   लोग   हैं   फिर   हमसे  शिक़ायत  कैसी

दुनिया   वाले  जो  करें  प्रेम  तो  अच्छा  लेकिन
जब   करें   हम   तो   कहे  लोग  मुहब्बत  कैसी 

दिल  बदलते  हैं  यहां  लोग  लिबासों  की  तरह
हमने  बदला  है  अगर  दिल  तो  क़यामत कैसी

लोग   यूं   ही   तो  नहीं  मरते  हैं  हम  पर  यारों
ये   ख़बर   सारे   ज़माने   को  है  उल्फ़त  कैसी

झूठ  से  बच  तो  नहीं सकता कभी तू भी प्रखर
बोलता   सच   हैं  अगर  तू  तो  सियासत  कैसी

०१/०३/२०२४      -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल जुर्म  की  जब  हो  हुकूमत  तो  वकालत  कैसी पूछते   लोग   हैं   फिर   हमसे  शिक़ायत  कैसी दुनिया   वाले  जो  करें  प्रेम  तो  अच्छा  लेकिन जब   करें   हम   तो   कहे  लोग  मुहब्बत  कैसी  दिल  बदलते  हैं  यहां  लोग  लिबासों  की  तरह हमने  बदला  है  अगर  दिल  तो  क़यामत कैसी लोग   यूं   ही   तो  नहीं  मरते  हैं  हम  पर  यारों ये   ख़बर   सारे   ज़माने   को  है  उल्फ़त  कैसी झूठ  से  बच  तो  नहीं सकता कभी तू भी प्रखर बोलता   सच   हैं  अगर  तू  तो  सियासत  कैसी ०१/०३/२०२४      -   महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल


जुर्म  की  जब  हो  हुकूमत  तो  वकालत  कैसी

पूछते   लोग   हैं   फिर   हमसे  शिक़ायत  कैसी

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