हर दर्द को अपना है बना लेतीं ।
हम स्त्रियां तकलीफ में भी हैं मुस्कुरा लेतीं।
खुद रहती हैं बिखरी हुई,
पर अपना आशियाना है बखूबी सजा लेतीं।
एक आस लिए जीवन है जीती।
खुश रखना है सभी को यही है चाहतीं।
और कोई चाहत नही है उनकी,
बस रिश्तों को सहेजना है जानती।
अपनी ख्वाइशों को करती है दफ़न।
निभाती हैं मान सम्मान और चलन।
इन सबके बावजूद भी जब नही मिलता प्रेम,
तो दो आसूं बहा गुजार देती हैं सारा जीवन।
हर दर्द को अपना...।
रश्मि वत्स ।
©Rashmi Vats
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