"ज़िंदगी उलझी पड़ी हुई है
पर इस उलझन को मै सुलझाना नहीं
बल्कि खुद इस उलझन में उलझना चाहती हूं
इस बहती हुई हवा को पकड़ना चाहती हूं
अपने ही ख्यालों में खोना चाहती हूं
बस और कुछ नहीं
ज़िंदगी की इस उलझन में बस उलझना चाहती हूं
- bharti shah"
ज़िंदगी उलझी पड़ी हुई है
पर इस उलझन को मै सुलझाना नहीं
बल्कि खुद इस उलझन में उलझना चाहती हूं
इस बहती हुई हवा को पकड़ना चाहती हूं
अपने ही ख्यालों में खोना चाहती हूं
बस और कुछ नहीं
ज़िंदगी की इस उलझन में बस उलझना चाहती हूं
- bharti shah