21 12111 2 11 21 21 2 12= 24 गैर इरादतन, लो इक और

"21 12111 2 11 21 21 2 12= 24 गैर इरादतन, लो इक और शाम हो गयी मुझ पे लगी तोहमतें भी नीलाम हो गयी मैं तो अब, तन्हाइयों से इश्क़ करता हूं, मेरी रातें तो यूं ही बदनाम हो गयी। भंवर में डूब जाना , महज किस्सा नही मेरी कस्ती तो अब गैरों के नाम हो गयी बदनामियों की भीड़ थी, मेरे कुनबे में, मैकदे से गुजरा तो सरेआम हो गयी। मेरी फकीरी को तुम लफ्ज दे रहे हो मेरी हस्ती तो, अब "राम" नाम हो गयी। ©Poet Ramashankar"

 21 12111 2 11 21 21 2 12= 24

गैर इरादतन, लो इक और शाम हो गयी
मुझ पे लगी तोहमतें भी नीलाम हो गयी 

मैं तो अब, तन्हाइयों से इश्क़ करता हूं,
मेरी  रातें तो  यूं  ही बदनाम  हो गयी।

भंवर में डूब जाना ,  महज किस्सा नही
मेरी कस्ती तो अब गैरों के नाम हो गयी

बदनामियों की भीड़ थी, मेरे कुनबे में,
मैकदे से गुजरा  तो सरेआम हो गयी।

मेरी फकीरी को तुम लफ्ज दे रहे  हो
मेरी हस्ती तो, अब "राम" नाम हो गयी।

©Poet Ramashankar

21 12111 2 11 21 21 2 12= 24 गैर इरादतन, लो इक और शाम हो गयी मुझ पे लगी तोहमतें भी नीलाम हो गयी मैं तो अब, तन्हाइयों से इश्क़ करता हूं, मेरी रातें तो यूं ही बदनाम हो गयी। भंवर में डूब जाना , महज किस्सा नही मेरी कस्ती तो अब गैरों के नाम हो गयी बदनामियों की भीड़ थी, मेरे कुनबे में, मैकदे से गुजरा तो सरेआम हो गयी। मेरी फकीरी को तुम लफ्ज दे रहे हो मेरी हस्ती तो, अब "राम" नाम हो गयी। ©Poet Ramashankar

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