Environment " मेरी दृष्टि से"- पर्यावरण पता है

"Environment " मेरी दृष्टि से"- पर्यावरण पता है मुझे, मेरा ही वर्चस्व है इस सृष्टि पे, फिर भी अपना हाल आज जाहिर करता हूं मैं, मेरी दुर्दशा देखो आज मेरी दृष्टि से| आज मानव का जंजाल है इस सृष्टि पर, और मेरा जीवन अंधकार है मेरी दृष्टि से धीरे धीरे मिट ता जा रहा है मेरा वर्चस्व, समझ नहीं पा रहा मानव मेरा महत्व, सूक्ष्म सा होता जा रहा हूं मैं इस धरती पे | हरे भरे पेड़, लहराते हुए फूल बगिया, शीतल सी मेरी महकती हुई छाया, उस छाया में मंद मंद मुस्काती हुई हवा का साया, आखिर क्या बिगाड़ा था मैंने ए मानव तेरा!! मेरे हरे भरे पेड़ों को कटवा कर, मनहूस सा क़र दिया तूने जीवन मेरा, बेझिझक होकर, बिना किसी शर्मिंदगी के, बसा लिया ऐ मानव! तूने अपना डेरा | जाने कितने जीव जंतुओं का छिन गया बसेरा, क्या कुछ नहीं दिया मैंने ऐ मानव तुझे! अफ़सोस अपने स्वार्थ तले बेच दिया तूने मुझे | मेरी कीमत अब तो समझ जा, मुझे ज़िंदा रखने के लिए अब तो तू ठहर जा, मेरी मनमोहक वोह हरी भरी हरियाली, मेरे फल फूल, मेरी शीतल छाया, टहनियों पे लगे झूले, तेरे जीवन में लाते हैं ताज़गी और खुशहाली| मेरे नष्ट होने से मैं आज नहीं, तू फिर भी आज है लेकिन बिन मेरे तेरा भी कल नहीं | बचा ले मुझे, संभाल ले मुझे, फैला दे मेरा बसेरा इस धरती की माटी पे, खुदा का दिया हुआ अनमोल वरदान हूँ मैं इस सृष्टि पे | मेरी इस दुर्दशा को समझ है मानव मेरी दृष्टि से, पता है मुझे, मेरा ही वर्चस्व है इस सृष्टि पे| प्रतिष्ठा सक्सैना (कम्ठान) स्वरचित ©Pratishtha Saxena"

 Environment 

" मेरी दृष्टि से"- पर्यावरण 

पता है मुझे, मेरा ही वर्चस्व है इस सृष्टि पे, 
फिर भी अपना हाल आज जाहिर करता हूं मैं, 
मेरी दुर्दशा देखो आज मेरी दृष्टि से|
आज मानव का जंजाल है इस सृष्टि पर, 
और मेरा जीवन अंधकार है मेरी दृष्टि से
धीरे धीरे मिट ता जा रहा है मेरा वर्चस्व, 
समझ नहीं पा रहा मानव मेरा महत्व, 
सूक्ष्म सा होता जा रहा हूं मैं इस धरती पे |
हरे भरे पेड़, लहराते हुए फूल बगिया, 
शीतल सी मेरी महकती हुई छाया, 
उस छाया में मंद मंद मुस्काती हुई हवा का साया,
आखिर क्या बिगाड़ा था मैंने ए मानव तेरा!!
मेरे हरे भरे पेड़ों को कटवा कर,
मनहूस सा क़र दिया तूने जीवन मेरा, 
बेझिझक होकर, बिना किसी शर्मिंदगी के, 
बसा लिया ऐ मानव! तूने अपना डेरा |
जाने कितने जीव जंतुओं का छिन गया बसेरा, 
क्या कुछ नहीं दिया मैंने ऐ मानव तुझे!
अफ़सोस अपने स्वार्थ तले बेच दिया तूने मुझे |
मेरी कीमत अब तो समझ जा, 
मुझे ज़िंदा रखने के लिए अब तो तू ठहर जा, 
मेरी मनमोहक वोह हरी भरी हरियाली, 
मेरे फल फूल, मेरी शीतल छाया, टहनियों पे लगे झूले, 
तेरे जीवन में लाते हैं ताज़गी और खुशहाली|
मेरे नष्ट होने से मैं आज नहीं, 
तू फिर भी आज है लेकिन बिन मेरे तेरा भी कल नहीं |
बचा ले मुझे, संभाल ले मुझे, 
फैला दे मेरा बसेरा इस धरती की माटी पे, 
खुदा का दिया हुआ अनमोल वरदान हूँ मैं इस सृष्टि पे |
मेरी इस दुर्दशा को समझ है मानव मेरी दृष्टि से, 
पता है मुझे, मेरा ही वर्चस्व है इस सृष्टि पे|

प्रतिष्ठा सक्सैना (कम्ठान)
स्वरचित

©Pratishtha Saxena

Environment " मेरी दृष्टि से"- पर्यावरण पता है मुझे, मेरा ही वर्चस्व है इस सृष्टि पे, फिर भी अपना हाल आज जाहिर करता हूं मैं, मेरी दुर्दशा देखो आज मेरी दृष्टि से| आज मानव का जंजाल है इस सृष्टि पर, और मेरा जीवन अंधकार है मेरी दृष्टि से धीरे धीरे मिट ता जा रहा है मेरा वर्चस्व, समझ नहीं पा रहा मानव मेरा महत्व, सूक्ष्म सा होता जा रहा हूं मैं इस धरती पे | हरे भरे पेड़, लहराते हुए फूल बगिया, शीतल सी मेरी महकती हुई छाया, उस छाया में मंद मंद मुस्काती हुई हवा का साया, आखिर क्या बिगाड़ा था मैंने ए मानव तेरा!! मेरे हरे भरे पेड़ों को कटवा कर, मनहूस सा क़र दिया तूने जीवन मेरा, बेझिझक होकर, बिना किसी शर्मिंदगी के, बसा लिया ऐ मानव! तूने अपना डेरा | जाने कितने जीव जंतुओं का छिन गया बसेरा, क्या कुछ नहीं दिया मैंने ऐ मानव तुझे! अफ़सोस अपने स्वार्थ तले बेच दिया तूने मुझे | मेरी कीमत अब तो समझ जा, मुझे ज़िंदा रखने के लिए अब तो तू ठहर जा, मेरी मनमोहक वोह हरी भरी हरियाली, मेरे फल फूल, मेरी शीतल छाया, टहनियों पे लगे झूले, तेरे जीवन में लाते हैं ताज़गी और खुशहाली| मेरे नष्ट होने से मैं आज नहीं, तू फिर भी आज है लेकिन बिन मेरे तेरा भी कल नहीं | बचा ले मुझे, संभाल ले मुझे, फैला दे मेरा बसेरा इस धरती की माटी पे, खुदा का दिया हुआ अनमोल वरदान हूँ मैं इस सृष्टि पे | मेरी इस दुर्दशा को समझ है मानव मेरी दृष्टि से, पता है मुझे, मेरा ही वर्चस्व है इस सृष्टि पे| प्रतिष्ठा सक्सैना (कम्ठान) स्वरचित ©Pratishtha Saxena

पड़ियेगा ज़रूर

#EnvironmentDay2021

People who shared love close

More like this

Trending Topic