पाश ! इस शहर के लोग जीते जी, अस्थि विसर्जन कर रहे | हिंदी Poetry Video

"पाश ! इस शहर के लोग जीते जी, अस्थि विसर्जन कर रहे हैं संबंधों में, आ चुका है मोलभाव बढ़ती कीमतें घटती संवेदनाएं प्रश्नचिन्ह समर्पण रूआसा दर्पण लेकर, इमारतें चल रही हैं मुझे यकीन है, अब कोई, एक दूजे के करीब नहीं नेत्रों में मित्रता नसीब नहीं मानवता अंत पर है, और स्नेह गहरी खाई में डूब चुका..! ©डॉ. अनुभूति "

पाश ! इस शहर के लोग जीते जी, अस्थि विसर्जन कर रहे हैं संबंधों में, आ चुका है मोलभाव बढ़ती कीमतें घटती संवेदनाएं प्रश्नचिन्ह समर्पण रूआसा दर्पण लेकर, इमारतें चल रही हैं मुझे यकीन है, अब कोई, एक दूजे के करीब नहीं नेत्रों में मित्रता नसीब नहीं मानवता अंत पर है, और स्नेह गहरी खाई में डूब चुका..! ©डॉ. अनुभूति

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