रंग लगाते किन गालों पर जो तुम ही पास नहीं।। कब आय | हिंदी शायरी

"रंग लगाते किन गालों पर जो तुम ही पास नहीं।। कब आया कब गया ये होली कतरा अहसाह नहीं।। तुम बिन बीता दिन हो जैसे कुछ भी खास नहीं।। रात भी काली रंग से निर्धन इस से आस नहीं।।"

 रंग लगाते किन गालों पर
जो तुम ही पास नहीं।।

कब आया कब गया ये होली
कतरा अहसाह नहीं।।

तुम बिन बीता दिन हो जैसे
कुछ भी खास नहीं।।

रात भी काली रंग से निर्धन
इस से आस नहीं।।

रंग लगाते किन गालों पर जो तुम ही पास नहीं।। कब आया कब गया ये होली कतरा अहसाह नहीं।। तुम बिन बीता दिन हो जैसे कुछ भी खास नहीं।। रात भी काली रंग से निर्धन इस से आस नहीं।।

"12 मिनट"

रंग लगाते किन गालों पर
जो तुम ही पास नहीं।।

कब आया कब गया ये होली
कतरा अहसाह नहीं।।

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