तुम्हारा मन और तुम्हारी इंद्रियाँ " ही तु | हिंदी विचार

"" तुम्हारा मन और तुम्हारी इंद्रियाँ " ही तुम्हारे जीवन के शत्रु हैं अतः दूसरों को दोष देकर सव्यम् पे अभिमान नहीं करते मानुष ! . ©श्री राधा"

 " तुम्हारा  मन   और  तुम्हारी   इंद्रियाँ "
ही  तुम्हारे  जीवन  के  शत्रु  हैं  




अतः
दूसरों   को   दोष   देकर   सव्यम्   पे 
अभिमान  नहीं  करते  मानुष !













.

©श्री राधा

" तुम्हारा मन और तुम्हारी इंद्रियाँ " ही तुम्हारे जीवन के शत्रु हैं अतः दूसरों को दोष देकर सव्यम् पे अभिमान नहीं करते मानुष ! . ©श्री राधा

जै जै श्री राधेश्याम!

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