उसका अब इस क़दर जिंदगी में आना हुआ है
जब उम्रे ख़ाक और पूरा शहर वीराना हुआ है,
कर के तबाह जो चला था दूर, तन्हा कभी
उसका वीरां दिल ही अब ठिकाना हुआ है.
जब गर्दिशो मे अकेले ही गुज़र रही है जिंदगी
तो क्या मलाल किसका आना जाना हुआ है,
रहते वक्त जब ख़ाक मुझे थाम ना सका वो
तो क्या कहूं की अब वो बेगाना हुआ है.
गुज़र रहा हूं मैं भी साल दर साल की तरह
चंद ख़्वाब में तेरे सारा ज़माना हुआ है,
मिलते रहें तुझे बड़े शहरों, मकानों की शानो शौकत
हम काफ़िरो का कहां कोई ठिकाना हुआ है.
है चंद दुनियां में बेरंग हम जैसे भी कई लोग
उनसे ही अपने मिजाज़ का लगाना हुआ है,
तुम खोए रहो, हम ख़ामोश, अपने झूठी दुनिया में
आख़िरी बार सोचेंगे क्या पाना हुआ है..
©काफ़िर_rk
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