"माँ तुम ठीक तो हो?"
अठारह साल पहले की बात है माँ,
जब एक सफेद कपड़े में लिपट कर दो हाथ मुझे तुम्हारी ओर ला रहे थे।
और वो पल, वो पल जब तुमने मुझे पहली बार हाथ में लिया ,ऐसा लगा के वो पल जीने के लिए ही दुनिया में आया हूँ।
तुम्हारे चेहरे पर की मुस्कान देख कर ऐसा लगा के मानो ज़िन्दगी जीने की वजह मिल गयी हो।
पर जैसे ही मेरी नज़र तुम्हारे आंखों से बहते हुए आंसुओ पर गयी, मेरा दिल थम सा गया,
बोलना तो नही जानता था ,मगर तुम्हारे दर्द से अंजान मेरा दिल तुम्हे बार बार पूछ रहा था के, "माँ तुम ठीक तो हो?"
तुम्हारी ममता में उलझते उलझते कुछ महीने युही बीत गये,