कभी कभी भोर का उगता हुआ सूरज हमारे कहानी के उगते | हिंदी Poetry Video

"कभी कभी भोर का उगता हुआ सूरज हमारे कहानी के उगते हुए सूरज के ठीक उलट होता है, और रेत सा फिसलता हुआ वक़्त हमारे भीतर किसी कहानी के हिस्से मे थमा हुआ होता हैं। कभी कभी बाहरी हलचल भी किसी मौन सा प्रतीत होती है और चेहरे पर पसरी शून्यता के पीछे कोई अदृश्य किरदार गूंज रहा होता हैं। कभी कभी सफर में होते हुए कदम कितनी आसानी से हार जाते हैं, और स्वंय के भीतर के इस अंनत सफर में ये कदम न जाने कितनी दफा मिलों चले होते हैं। कभी कभी हर फर्ज मे सरीक अपना किरदार सा लगता है और कभी कभी मेरे हिस्से में "मै " ही कहीं नही।। ©silent_Note "

कभी कभी भोर का उगता हुआ सूरज हमारे कहानी के उगते हुए सूरज के ठीक उलट होता है, और रेत सा फिसलता हुआ वक़्त हमारे भीतर किसी कहानी के हिस्से मे थमा हुआ होता हैं। कभी कभी बाहरी हलचल भी किसी मौन सा प्रतीत होती है और चेहरे पर पसरी शून्यता के पीछे कोई अदृश्य किरदार गूंज रहा होता हैं। कभी कभी सफर में होते हुए कदम कितनी आसानी से हार जाते हैं, और स्वंय के भीतर के इस अंनत सफर में ये कदम न जाने कितनी दफा मिलों चले होते हैं। कभी कभी हर फर्ज मे सरीक अपना किरदार सा लगता है और कभी कभी मेरे हिस्से में "मै " ही कहीं नही।। ©silent_Note

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