ग़ज़ल :-
ख्वाब आँखों में क्या पला था तब ।
छोड़कर जब सनम गया था तब ।।१
खत वहीं पे जला दिया था तब ।
बेवफ़ा जब सनम हुआ था तब ।।२
वक्त पे मैं पहुँच नहीं पाया ।
प्यार नीलाम हो चुका था तब ।।३
फासला चाह के किया उसने ।
प्यार का सिलसिला रुका था तब ।।४
कैसे कर ले यकीं सितमगर पे ।
उसकी हर बात में दगा था तब ।।५
राह कोई नजर न थी आती ।
पास कुछ भी न तो बचा था तब ।।६
खेल हम जाते जान की बाजी ।
साथ कोई नही खड़ा था तब ।।७
अब तो आँखों से बस बहे पानी ।
जख्म़ ऐसा हमें मिला था तब ।।८
दिल का सौदा करें प्रखर कैसे ।
प्यार में ही ठगा गया था तब ।।९
०६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
ख्वाब आँखों में क्या पला था तब ।
छोड़कर जब सनम गया था तब ।।१
खत वहीं पे जला दिया था तब ।