चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन
काशी के हैं घाट निराले ।
भक्त सभी है डेरा डाले ।।
माँ गंगा की करें आरती ।
होती खुश हैं मातु भारती ।।
भोले बाबा की यह नगरी ।
गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।।
बम-बम बम-बम होती काशी ।
हरते दुख सबके अविनाशी ।।
यह तन है मिट्टी की काया ।
इसकी बस कुछ दिन की छाया ।।
आज मान लो मेरी बातें ।
होगी जगमग तेरी रातें ।।
माँ गंगा में ध्यान लगाओ ।
भव से सभी पार हो जाओ ।।
यह तन माया की है गठरी ।
हाथ न आये बिल्कुल ठठरी ।।
पाप सभी गंगा धुल आये ।
फिर भी मन में पाप छुपाये ।।
पाप नाशिनी होती गंगा ।
मारा डुबकी मन है चंगा ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन
काशी के हैं घाट निराले ।
भक्त सभी है डेरा डाले ।।
माँ गंगा की करें आरती ।
होती खुश हैं मातु भारती ।।
भोले बाबा की यह नगरी ।
गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।।