आख़िर क्या मिलता है इस दंगे से रोटी का मज़हब पूछो | हिंदी Shayari

"आख़िर क्या मिलता है इस दंगे से रोटी का मज़हब पूछो भूखे से मरने वालों को मौत नहीं आती यूँ होता है तेरे ना होने से याद है तुम जब भी मुझको दिखती थी गाने सुनता था मै 'किवें मुखड़े' ' से *kivein mukhde to nazra hatawa मुझ शाइर से बस दिल बहलेगा दोस्त शादी होगी इक अफ़सर लड़के से धोका तो धोका है हर सूरत में ख़ारिज होगा शेर फ़क़त नुक्ते से 'नीर' हमारे काम हुनर आना है हम लोग नहीं बिक सकते चेहरे से -नीरज नीर ©Neeraj Neer"

 आख़िर क्या मिलता है इस दंगे से
रोटी का मज़हब पूछो भूखे से

मरने वालों को मौत नहीं आती 
यूँ होता है तेरे ना होने से

याद है तुम जब भी मुझको दिखती थी
गाने सुनता था मै 'किवें मुखड़े' ' से
*kivein mukhde to nazra hatawa

मुझ शाइर से बस दिल बहलेगा दोस्त
शादी होगी इक अफ़सर लड़के से

धोका तो धोका है हर सूरत में
ख़ारिज होगा शेर फ़क़त नुक्ते से

'नीर' हमारे काम हुनर आना है 
हम लोग नहीं बिक सकते चेहरे से

-नीरज नीर

©Neeraj Neer

आख़िर क्या मिलता है इस दंगे से रोटी का मज़हब पूछो भूखे से मरने वालों को मौत नहीं आती यूँ होता है तेरे ना होने से याद है तुम जब भी मुझको दिखती थी गाने सुनता था मै 'किवें मुखड़े' ' से *kivein mukhde to nazra hatawa मुझ शाइर से बस दिल बहलेगा दोस्त शादी होगी इक अफ़सर लड़के से धोका तो धोका है हर सूरत में ख़ारिज होगा शेर फ़क़त नुक्ते से 'नीर' हमारे काम हुनर आना है हम लोग नहीं बिक सकते चेहरे से -नीरज नीर ©Neeraj Neer

आख़िर क्या मिलता है इस दंगे से
रोटी का मज़हब पूछो भूखे से

मरने वालों को मौत नहीं आती
यूँ होता है तेरे ना होने से

याद है तुम जब भी मुझको दिखती थी
गाने सुनता था मै 'किवें मुखड़े' ' से

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