वो मिल के बिछड़ा कि यकीं ना आया
भरम इश्क़ का रहा, यकीं ना आया !
सहर से शाम उसे आँख भर के देखा
वो मंज़र बीत गया, यकीं ना आया !!
कि यादों में कैद फिर भी दूर था
वो खफा था मुझसे, यकीं ना आया !
सितारों से घिरा मायूस सा मैं...
वो तन्हा चांद था, यकीं ना आया !!
©Shikha Sharma
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