उठाना था बोझ बस्ते का, आ काँधे जिम्मदारीे बैठ गई।

"उठाना था बोझ बस्ते का, आ काँधे जिम्मदारीे बैठ गई। पढ़ना-लिखना चाहती थी वह भी पर गरीबी की चोट से उसकी पट्टी फुट गई। ✍ गुमनाम"

 उठाना था बोझ बस्ते का,
आ काँधे जिम्मदारीे बैठ गई।
 पढ़ना-लिखना चाहती थी वह भी
पर गरीबी की चोट से उसकी पट्टी फुट गई।
✍ गुमनाम

उठाना था बोझ बस्ते का, आ काँधे जिम्मदारीे बैठ गई। पढ़ना-लिखना चाहती थी वह भी पर गरीबी की चोट से उसकी पट्टी फुट गई। ✍ गुमनाम

#गरीबी
#nojoto

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