ग़ज़ल
तेरी चाहत का है असर मुझमें ।
एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।।
ज़िन्दगी ये हसीन भी होती ।
पर अभी बाकी कुछ कसर मुझमें ।।
जिस तरह चाहता हूँ मैं तुमको
उस तरह यार फिर उतर मुझमें ।।
खोजते तुम जिसे हमीं में हो ।
उसका होता नहीं बसर मुझमें ।।
व्यर्थ करती है इश्क़ का दावा ।
वह न आती कहीं नज़र मुझमें ।।
दिल चुराया अगर तुम्हारा है ।
कह दे उससे अभी निकर मुझमें ।।
भूलकर भी न दूर जाता है ।
वो सितमगर छुपा प्रखर मुझमें ।।
०९/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल
तेरी चाहत का है असर मुझमें ।
एक सुंदर बसा नगर मुझमें ।।