उलझी-उलझी रात रह गई उलझी-बातों में, अंखियां भरी- | हिंदी कविता

"उलझी-उलझी रात रह गई उलझी-बातों में, अंखियां भरी-भरी रहती हैं भादों की बरसातों में! ©जोगन!"

 उलझी-उलझी रात रह गई
उलझी-बातों में,


अंखियां भरी-भरी रहती हैं
भादों की बरसातों में!

©जोगन!

उलझी-उलझी रात रह गई उलझी-बातों में, अंखियां भरी-भरी रहती हैं भादों की बरसातों में! ©जोगन!

#भादों की बरसात

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