उम्र गुज़रेगी अब तीरगी में काफ़ी बेचैनी है रौशनी मे | English Shayari Vi

"उम्र गुज़रेगी अब तीरगी में काफ़ी बेचैनी है रौशनी में । साल ये भी अकेले बिताया, वो नहीं आई दीपावली में । ईश्क़ ख़ातिर कमाना पड़ेगा, क्या रखा है यहाँ शायरी में । दोस्त तक नहीं करते अब तो, कौन है साथ दे मुफ्लिसी में । ख़त्म कर इश्क़-ओ-रब्त-ओ-तल्लुक़ याद ही बस बची है ज़िंदगी में । तज़रबा कह रहा सबको 'राही' मत यक़ीन कीजिए आशिक़ी में । © राही"

उम्र गुज़रेगी अब तीरगी में काफ़ी बेचैनी है रौशनी में । साल ये भी अकेले बिताया, वो नहीं आई दीपावली में । ईश्क़ ख़ातिर कमाना पड़ेगा, क्या रखा है यहाँ शायरी में । दोस्त तक नहीं करते अब तो, कौन है साथ दे मुफ्लिसी में । ख़त्म कर इश्क़-ओ-रब्त-ओ-तल्लुक़ याद ही बस बची है ज़िंदगी में । तज़रबा कह रहा सबको 'राही' मत यक़ीन कीजिए आशिक़ी में । © राही

एक ग़ज़ल से चंद अश'आर
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