उम्मीदों के साए में हमारे सपनों की झोपड़ी में जिन च | हिंदी कविता

"उम्मीदों के साए में हमारे सपनों की झोपड़ी में जिन चिरागों को तुमने बुझा दिया उन्हें फिर से जलाना चाहता हूं। जिस इतिहास को तुमने मिटा दिया उन्हें फिर से लिखना चाहता हूं। कलम हमारी हो हमारे इतिहास पर क्यूंकि दुश्मन आतुर है हमारी तबाही पर।"

 उम्मीदों के साए में
हमारे सपनों की झोपड़ी में
जिन चिरागों को तुमने बुझा दिया
उन्हें फिर से जलाना चाहता हूं।
जिस इतिहास को तुमने मिटा दिया
उन्हें फिर से लिखना चाहता हूं।
कलम हमारी हो हमारे इतिहास पर
क्यूंकि दुश्मन आतुर है हमारी तबाही पर।

उम्मीदों के साए में हमारे सपनों की झोपड़ी में जिन चिरागों को तुमने बुझा दिया उन्हें फिर से जलाना चाहता हूं। जिस इतिहास को तुमने मिटा दिया उन्हें फिर से लिखना चाहता हूं। कलम हमारी हो हमारे इतिहास पर क्यूंकि दुश्मन आतुर है हमारी तबाही पर।

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