sab kuch kanha kah paate hain
मन की लाखों बातों को,
जुबां पर न ला पाते हैं,
कुछ कहने की चाह में,
बहुत कुछ हम भूल जाते हैं
हम सब कुछ कहाँ कह पाते हैं
लोगों ने तो बदनाम किया,
मुझे यूँ ही बातूनी कह कर,
पर उन बातों में,
काम की बात नहीं बोल पाते हैं,
हम सब कुछ कहाँ कह पाते हैं
कब करूँ तेरे हुस्न की तारिफ,
कब रखूँ मैं चलने की ख्वाईश,
हम इसी मैं फसें रह जाते हैं
हम सब कुछ कहाँ कह पाते हैं।
sab kuch kanha kah paate hain