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२३ वर्ष की आयु मैं उनको अपराधी सिद्ध कर डाला था।
फांसी के फंदे को चूमा उसने दिल मैं आजादी को पाला था।
मरते दम तक अपने मुख से उसने इंकलाब को गया था।
इस राष्ट्र की आज़ादी के खातिर वो प्राणों को दे आया था।
उस वीर सपूत के कर्जों को न पढ़ कर के झुठलाना तुम।
याद करो जब उनके बलिदानों को इंकलाब को दोहराना तुम।
©Somya Shukla
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