"यह सच है कि हमने बहुत देखा है..
पर क्या देखा है
सूरज को उगते देखा है..
चांद को छुपाते देखा ह.
कोयल को गाते देखा है..
कवि को घड़े में पत्थर डालते देखा है
कौवे को पानी पीते देखा है....
इंसान को इंसानियत के खिलाफ देखा है..
कच्चे घरों को पक्के घरों को देखा है..
हिंदी को उबलते देखा है..
अंग्रेजी को पिघलते देखा है.
.रावण को रामायण सुन1ते देखा है
राम को दुविधा में देखा है..
par humne itna sub kuch kyun
dekha hai
©neelu
"