White जिंदगी के स्टेशन पर
जब उसे विदा करने गए
उसने कहां कुछ महीने तुम्हारे संग
इक पल में बीत गए
तुम नहीं रोकोगे
क्या मैं खुदको रोक लूं ?
आइना बनकर आंखों में तुम्हारे
जिंदगीभर देख लूं ?
पहले से बंधा हुआ मैं
उसको कैसे बांध लूं ?
पैर दलदल में फंसे हुए
उसको कैसे हाथ दूं ?
रिहाई की उम्मीद नहीं
उसको कैसे मनाऊं ?
सबकुछ जानकर भी
कैसे अपना बनाऊं ?
फिर पत्थर ने पत्थर बनकर कहां
देख तेरी गाड़ी तुझे मंजिल पर ले जाएगी
हमेशा की तरह रात मेरी स्टेशन पर बीत जाएगी...!
©gaTTubaba
#good_night_images जिंदगी के स्टेशन पर
जब उसे विदा करने गए
उसने कहां कुछ महीने तुम्हारे संग
इक पल में बीत गए