अब भी बाकी है मुझमें तलब तुम्हारी, काश तुम समझ पात | हिंदी Shayari Vid

"अब भी बाकी है मुझमें तलब तुम्हारी, काश तुम समझ पाते तड़प हमारी, खामोशियां भी देती है अब मुझे दुहाई, क्यों मारते हो तुम अपने ही पैर परअपनी कुल्हाड़ी। ©M Vicky "

अब भी बाकी है मुझमें तलब तुम्हारी, काश तुम समझ पाते तड़प हमारी, खामोशियां भी देती है अब मुझे दुहाई, क्यों मारते हो तुम अपने ही पैर परअपनी कुल्हाड़ी। ©M Vicky

क्यों मारते हो अपने ही पैर पर अपनी कुल्हाड़ी...
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