ग़म के मंज़र से बाहार निकल‌ के थोड़ा‌ सजले, बिंदी | हिंदी कव

"ग़म के मंज़र से बाहार निकल‌ के थोड़ा‌ सजले, बिंदी झुमका कंकन पायल से खुद को सजाले! आयने में खुद को निहारले मेरे नज़रो से, कितनी खुबसुरत हैं तु देख ले जरा करीब से! छुपाई हैं तुने आपनी बेचैनी को एक आदा से, इंतजार हैं तुझको मेरा कांहीं सदिओ से, काग़ज के नाव में लिख के पेंगाम बाहा दिया मैंने नदींओ में, साहिल के तट पे बसा हे तेरा शहर इसी उम्मींद से! मेहसुस कर उस एहसास को जो गुजर रहा है तेरे नजदीक से, वही मोहाल हैं अब मेरे रूह के आरज़ु से! ©Yogesh More "

ग़म के मंज़र से बाहार निकल‌ के थोड़ा‌ सजले, बिंदी झुमका कंकन पायल से खुद को सजाले! आयने में खुद को निहारले मेरे नज़रो से, कितनी खुबसुरत हैं तु देख ले जरा करीब से! छुपाई हैं तुने आपनी बेचैनी को एक आदा से, इंतजार हैं तुझको मेरा कांहीं सदिओ से, काग़ज के नाव में लिख के पेंगाम बाहा दिया मैंने नदींओ में, साहिल के तट पे बसा हे तेरा शहर इसी उम्मींद से! मेहसुस कर उस एहसास को जो गुजर रहा है तेरे नजदीक से, वही मोहाल हैं अब मेरे रूह के आरज़ु से! ©Yogesh More

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