Men walking on dark street कैसा हो जो हो रुदन,
आवाज़ भी न हो।
स्वावलंभ से भरा रहूं,
कोई आश भी न हो।
और बस इसी एक ख्वाब पर,
खुदको लुटा दूं में,
जिंदगी हो एक आतिश,
जो कुछ खास भी ना हो।
सुनना जरूरी नहीं सुनाना भी नहीं चाहता,
एक आखरी जवाब फिर कोई सवाल ही ना हो।
मैं कोई कोरा कागज़ नहीं हूं,
भरा पड़ा हूं शब्दों से,
बस एक बार जाग जाऊं,
और फिर कोई इतवार भी ना हो।
कितना अच्छा हो अगर,
बिकने लगे नाम और पता,
इस कश्मकश में कोई मेरा
इश्तियार भी ना हो!
©Lamha
#Emotional
यूंही कहीं...